अगर तुम सच्चे नबी हो तो चाँद के दो टुकड़े करके दिखाओ रसूल अल्लाह (स०) के एक इशारे पर जब हुए चाँद के दो टुकड़े
हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मक्का शरीफ के कुफ्फार ने रसुल अल्लाह (स.) से सवाल किया कि आप अगर नबी है तो अपनी नबुव्वत की कोई निशानी दिखायें हमें मोजिजा दिखायें ! तो रसुल अल्लाह (स.) ने चांद की तरफ अपनी उंगली से इशारा किर के चांद के दो टुकडे कर के दिखाये
हज़रत इब्ने मसऊद रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसुल अल्लाह (स.) के जमाने में चांद के दो टूकडे हुए एक पहाड के ऊपर था और एक नीचे तो रसुल अल्लाह (स.) ने फरमाया ए लोगों इस पर गवाह रहो
दोनों हदीसों का मकसद एक ही है यानी चांद के दो टूकडे हो गये और इन दोनों टूकडों का वकूअ ऐसा था कि जबले हिरा इन के दर्मियान ऐसा नज़र आ रहा था एक टूकडा पहाड के उपर था एक नीचे |
इमाम फखरुद्दीन राज़ी ने फरमाया कि कुछ लोगों को यह वहम हुआ कि चांद के दो टूकडे फरमाने का मोज़िजा एक हौलनाक अमर था अगर यह वाकेय होता तो तमाम रुए ज़मीन के लोग देखते और हदीस के रावी कसीर तादाद में होते इसी तरह हदीस मुतावातिर होती हालांकि यह खबर वाहिद है तो इसका जवाब दिया गया कि जो इस हदीस और मोज़िजा को मानते हैं उनके नज़दीक कसीर मिक़दार में उसे लोगों ने नक्ल किया है इसलिए यह मुतावातिर है लेकिन मुख़ालफीन को हो सकता है कि गफलत तारी हो गई हो जिस तरह सूरज को ग्रहण लगता है तो कोई तव्वजोह करता है और कोई नहीं करता |
अल्लामा नूवी रहमतुल्लाह अ़लैहि ने शरह मुस्लिम में इसकी वजह ब्यान की है कि नबी करीम (स.) के जमाने में कसीर लोग इस मोज़िजा को क्यों नहीं देख सके थे आप फरमाते हैं कि यह मोज़िजा चांद के दो टूकडे होना रात को वाक़ेअ हुआ और बड़े बड़े लोग गा़फिल हो कर सोए हुए थे और दरवाजे बंद थे, ऐसे हालात में इंसान कम ही आसमान की तरफ देखता है और आसमान में कम ही तफ़क्कुर करता है और शरहुस सुन्ना में यह भी जिक्र है कि मुतालबा भी एक खास कौम ने किया था और उन्होंने ही देखा था की दूसरे लोग ग़ाफिल होकर सो रहे थे
(तज़किरतुल अंबिया)
चांद के दो टुकड़े होने का ये वाकया सच्चा था ये हम आज भी पूरे दावे से कहते हैं नबी करीम (स.) द्वारा चांद के तोड़े जाने की इस घटना ने कई वैज्ञानिक तथ्यों को भी स्पष्ट कर दिया जिनकी पुष्टि आज भी अंतरिक्ष विज्ञानी करते हैं
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Sadik Hussain shaikh
बुखारी शरीफ #3637, मुस्लिम शरीफ #7076
हज़रत इब्ने मसऊद रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसुल अल्लाह (स.) के जमाने में चांद के दो टूकडे हुए एक पहाड के ऊपर था और एक नीचे तो रसुल अल्लाह (स.) ने फरमाया ए लोगों इस पर गवाह रहो
सहीह बुखारी बुक 56, हदीस #830
दोनों हदीसों का मकसद एक ही है यानी चांद के दो टूकडे हो गये और इन दोनों टूकडों का वकूअ ऐसा था कि जबले हिरा इन के दर्मियान ऐसा नज़र आ रहा था एक टूकडा पहाड के उपर था एक नीचे |
इमाम फखरुद्दीन राज़ी ने फरमाया कि कुछ लोगों को यह वहम हुआ कि चांद के दो टूकडे फरमाने का मोज़िजा एक हौलनाक अमर था अगर यह वाकेय होता तो तमाम रुए ज़मीन के लोग देखते और हदीस के रावी कसीर तादाद में होते इसी तरह हदीस मुतावातिर होती हालांकि यह खबर वाहिद है तो इसका जवाब दिया गया कि जो इस हदीस और मोज़िजा को मानते हैं उनके नज़दीक कसीर मिक़दार में उसे लोगों ने नक्ल किया है इसलिए यह मुतावातिर है लेकिन मुख़ालफीन को हो सकता है कि गफलत तारी हो गई हो जिस तरह सूरज को ग्रहण लगता है तो कोई तव्वजोह करता है और कोई नहीं करता |
अल्लामा नूवी रहमतुल्लाह अ़लैहि ने शरह मुस्लिम में इसकी वजह ब्यान की है कि नबी करीम (स.) के जमाने में कसीर लोग इस मोज़िजा को क्यों नहीं देख सके थे आप फरमाते हैं कि यह मोज़िजा चांद के दो टूकडे होना रात को वाक़ेअ हुआ और बड़े बड़े लोग गा़फिल हो कर सोए हुए थे और दरवाजे बंद थे, ऐसे हालात में इंसान कम ही आसमान की तरफ देखता है और आसमान में कम ही तफ़क्कुर करता है और शरहुस सुन्ना में यह भी जिक्र है कि मुतालबा भी एक खास कौम ने किया था और उन्होंने ही देखा था की दूसरे लोग ग़ाफिल होकर सो रहे थे
(तज़किरतुल अंबिया)
चांद के दो टुकड़े होने का ये वाकया सच्चा था ये हम आज भी पूरे दावे से कहते हैं नबी करीम (स.) द्वारा चांद के तोड़े जाने की इस घटना ने कई वैज्ञानिक तथ्यों को भी स्पष्ट कर दिया जिनकी पुष्टि आज भी अंतरिक्ष विज्ञानी करते हैं
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